लोकनाथ यशवंत की मराठी कविता का किरण मेश्राम द्वारा हिन्दी अनुवाद
जागृति
रात होते ही शहर में पोस्टर लगा देते हैं
ये वो जज़्बा कि पूरी रात गुज़ार देते हैं
उम्मीद थी कि शहर में कल कुछ होगा ज़रूर
सोये भी थे रात में जैसे के जागे हुए हैं
मैंने देखा ज़ुबान खामोश थी हर किसी की
साथ दीवारों के रास्ते भी बोल रहे थे
शहर भी खामोश था मातम की तरह
लग गये लोग काम में अपना हक़ भूल कर
खामोश शहर की सड़क पर कल भटकते देखा
डालकर आँखों में आँखें लोग बाते कर रहे हैं ।
कविता और अनुवाद दोनो-अद्भुत
ReplyDeletewww.maheshalok.blogspot.com- डा० महेश आलोक
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
ReplyDeletewelcome in blog world
ReplyDeleteWelcome in Hindi blog world
ReplyDeletebadhiya !
ReplyDeleteस्वागतम !
ReplyDeleteअनुवाद में रदीफ़-काफ़िए का भी खयाल रखें.... मात्र सुझाव :)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट
ReplyDeleteआभार
ReplyDeleteआलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
ReplyDeleteके आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html