Saturday, November 20, 2010

डब्ल्यू कपूर की इस मराठी कविता ' ज़खम  ' का हिन्दी अनुवाद कपूर वासनिक द्वारा

 ज़ख्म 

कल का ज़ख्म 
कुछ और था 
ऐसे कैसे कहूँ दोस्त  
पीड़ा के आवर्तनों की जाति
एक ही तो है 
माना आज सिर्फ खरोंच आई है 
भलभलाकर 
खून नहीं बह रहा कल की तरह 
लेकिन आज की खरोंच ही से 
कल का ज़ख्म हरा हो उठा
उसका क्या ...?

2 comments:

  1. बहुत बढिया कविता है ... यह डब्ल्यू कपूर नाम का कवि फिरसे सक्रिय हो यह उम्मीद ।

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  2. मुम्बई के फुटपाथ का यह चित्र भी अच्छा है ।

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