वेद से पहले तुम थे
बाबूराव बागुल
वेद से पहले तुम थे
वेद के परमेश्वर से पहले तुम थे
पंच महाभूतों का देख
विराट,विकराल रूप
तुम व्यथित विफल होते थे
और हाथों को उठाकर
तुम कर रहे थे याचना
उन याचनाओं का नाम है 'ऋचा '
सभी ईश्वरों के जन्मोत्सव
तुमने ही मनाये
सभी प्रेषितों का नामकरण संस्कार
तुमने ही सानंद मनाया
हे मानव
तुमने ही सूर्य को कहा सूर्य
और सूर्य सूर्य बन गया
तुम ने ही कहा चन्द्र को चन्द्र
और चन्द्र, चन्द्र बन गया
अखिल विश्व का नामकरण
तुम ने ही किया
और, हर एक ने कबूल किया.
हे प्रतिभावान मानव
तुम ही हो सब कुछ
तुम से ही तो सम्प्राण सुंदर
बन गयी है यह मही
वेद से पहले तुम थे
वेद के परमेश्वर से पहले तुम थे
पंच महाभूतों का देख
विराट,विकराल रूप
तुम व्यथित विफल होते थे
और हाथों को उठाकर
तुम कर रहे थे याचना
उन याचनाओं का नाम है 'ऋचा '
सभी ईश्वरों के जन्मोत्सव
तुमने ही मनाये
सभी प्रेषितों का नामकरण संस्कार
तुमने ही सानंद मनाया
हे मानव
तुमने ही सूर्य को कहा सूर्य
और सूर्य सूर्य बन गया
तुम ने ही कहा चन्द्र को चन्द्र
और चन्द्र, चन्द्र बन गया
अखिल विश्व का नामकरण
तुम ने ही किया
और, हर एक ने कबूल किया.
हे प्रतिभावान मानव
तुम ही हो सब कुछ
तुम से ही तो सम्प्राण सुंदर
बन गयी है यह मही
~अनुवाद निशिकांत ठकार~
प्रज्ञा पवार
तू मेरा बाप है
और मै तेरी बेटी क्या इतना सा ही है अपने बीच का रिश्ता !
इस जैविक बिंदु से परे मैं तुझे पहचानती
और तू मुझे
अक्षरमाला से अक्षरों तक की इस राह पर
तुने मुझे क्या दिया
और मैंने तुझ से क्या लिया
तूने कभी गूंथने नहीं दिया मेरे मन को
अभावों के खिलौनों में
चौका-बर्तन के और गुड़ियों के काले साए
तूने पड़ने नहीं दिए मेरी कोमल किरणों पर
मैं सहजता से मुक्त हुई
बिन्दुओं की सफ़ेद रंगोली से
और कसीदे की आड़ी- तिरछी चौखट से
तूने दिखाया मुझे
गाँव सिवान के टुकड़े करने वाला
अतीत का दुखता पट्टा
और वर्तमान में उफनता
चैत्य भूमि का शांत महासागर
मोमबत्तियों की मद्धिम रौशनी में
आँखों की चमकती पुतलियाँ
और ख्वाबों की गठरी लेकर लौटते
अपने ही विराटबौने पाँव
तेरे भीतर सदा गदगद दुःख से व्याकुल पेड़ को
फूटती गई टहनियां बेकाबू
फिर भी कभी तूने काटा नहीं उन्हें
अपने दिल की डंठल से
सहता गया अपने साथ सभी को
और देता गया अर्थ झरे हुए संबंधों को
सचमुच, तू कौन है मेरा ?
बाप ...दोस्त ...प्रियतम सखा
जब आगे की जमीन ओझल होने लगी
और मेरे चुने हुए फूल के शव बहते आये
काले घने हौज में
तब तूने मेरे हर आक्रोश यातना को
शांत किया असीम प्रेम से
दिखाया आकाश का मेघ रहित नीलापन ....
आगे का सब कुछ तुझे पता है
तूझे पता है मेरी शाश्वत दिशाएं
और मुझे निरंतर सहेजी हुई तेरी उजली सी
कोमलता
तू मेरा बाप है
और मैं तेरी बेटी
इतना ही नहीं अपने बीच का रिश्ता
तू मेरा बाप है
और मै तेरी बेटी क्या इतना सा ही है अपने बीच का रिश्ता !
इस जैविक बिंदु से परे मैं तुझे पहचानती
और तू मुझे
अक्षरमाला से अक्षरों तक की इस राह पर
तुने मुझे क्या दिया
और मैंने तुझ से क्या लिया
तूने कभी गूंथने नहीं दिया मेरे मन को
अभावों के खिलौनों में
चौका-बर्तन के और गुड़ियों के काले साए
तूने पड़ने नहीं दिए मेरी कोमल किरणों पर
मैं सहजता से मुक्त हुई
बिन्दुओं की सफ़ेद रंगोली से
और कसीदे की आड़ी- तिरछी चौखट से
तूने दिखाया मुझे
गाँव सिवान के टुकड़े करने वाला
अतीत का दुखता पट्टा
और वर्तमान में उफनता
चैत्य भूमि का शांत महासागर
मोमबत्तियों की मद्धिम रौशनी में
आँखों की चमकती पुतलियाँ
और ख्वाबों की गठरी लेकर लौटते
अपने ही विराटबौने पाँव
तेरे भीतर सदा गदगद दुःख से व्याकुल पेड़ को
फूटती गई टहनियां बेकाबू
फिर भी कभी तूने काटा नहीं उन्हें
अपने दिल की डंठल से
सहता गया अपने साथ सभी को
और देता गया अर्थ झरे हुए संबंधों को
सचमुच, तू कौन है मेरा ?
बाप ...दोस्त ...प्रियतम सखा
जब आगे की जमीन ओझल होने लगी
और मेरे चुने हुए फूल के शव बहते आये
काले घने हौज में
तब तूने मेरे हर आक्रोश यातना को
शांत किया असीम प्रेम से
दिखाया आकाश का मेघ रहित नीलापन ....
आगे का सब कुछ तुझे पता है
तूझे पता है मेरी शाश्वत दिशाएं
और मुझे निरंतर सहेजी हुई तेरी उजली सी
कोमलता
तू मेरा बाप है
और मैं तेरी बेटी
इतना ही नहीं अपने बीच का रिश्ता
तुम्हारे भीतर सदा गदगद दुःख से व्याकुल पेड़ से
सुनाई देती है हरी- भरी अनोखी सरसराहट
तू ही बता
किस तरह से वह खिल आई है
सुनाई देती है हरी- भरी अनोखी सरसराहट
तू ही बता
किस तरह से वह खिल आई है
~अनुवाद- प्रफुल्ल शिलेदार~