Tuesday, November 23, 2010

छोटे - बड़े लोगों के दुख

शरद कोकास की एक हिन्दी कविता

दुख

बड़े लोगों ने अपने दुख
बड़े करके देखे
छोटे लोगों ने देखे करके छोटे
इस तरह
छोटे लोग बड़े हुए
और बड़े लोग हुए छोटे

इस कविता का मराठी अनुवाद स्वयँ कवि द्वारा

दुख


मोठ्यांनी आपले दुःख
मोठे करून बघितले
लहानांनी लहान करून बघितले
अशा रीती ने
लहान लोक झाले मोठे
आणि मोठे लोक झाले लहान|

Saturday, November 20, 2010

उम्मीद थी कि शहर में कल कुछ होगा ज़रूर

लोकनाथ यशवंत की मराठी कविता का किरण मेश्राम द्वारा हिन्दी अनुवाद 

जागृति 

रात होते ही शहर में पोस्टर लगा  देते हैं
ये वो जज़्बा कि पूरी रात गुज़ार देते हैं

उम्मीद थी कि शहर में कल कुछ होगा ज़रूर
सोये भी थे रात में जैसे के जागे हुए हैं

मैंने देखा ज़ुबान खामोश थी हर किसी की
साथ दीवारों के रास्ते भी बोल रहे थे

शहर भी खामोश था मातम की तरह
लग गये लोग काम में अपना हक़ भूल कर

खामोश शहर की सड़क पर कल भटकते देखा
 डालकर आँखों में आँखें लोग बाते कर रहे हैं ।
डब्ल्यू कपूर की इस मराठी कविता ' ज़खम  ' का हिन्दी अनुवाद कपूर वासनिक द्वारा

 ज़ख्म 

कल का ज़ख्म 
कुछ और था 
ऐसे कैसे कहूँ दोस्त  
पीड़ा के आवर्तनों की जाति
एक ही तो है 
माना आज सिर्फ खरोंच आई है 
भलभलाकर 
खून नहीं बह रहा कल की तरह 
लेकिन आज की खरोंच ही से 
कल का ज़ख्म हरा हो उठा
उसका क्या ...?

हिन्दी और मराठी की कवितायें



कालची जखम


कालची जखम वेगळीच होतीअसे कसे म्हणू मित्रा
वेदनांची आवर्तने सारी एकाच जातीची
कबूल! आजचा वार निसटता आहे 
भळभळून रक्त वाहत नाही कालसारखे
पण, आजच्या ह्या निसटत्या वारानेच
कालची जख्म जर्द झाली त्याचे काय?


-डब्ल्यू कपूर


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वाटेनेच आपला धर्म बदलला


हे मात्र पहिल्यांदाच अनुभवतो आहे
नाही असे नाही
तसे चिमटे ह्या आधीही काढले होते
खरे सांगतो,
पायांना ते कधी झोंबलेच नाहीत
आज असे कसे होत आहे ?
चक्क चटके बसताहेत निखारयांचे   
माझ्या आधीही कित्येक गेलेत ना ह्या वाटेने 
मग मलाच कां ही जीवघेणी सजा ?
माझे पायच झालेत अधिक संवेदनशील
की वाटेनेच आपला धर्म बदलला ?
-डब्ल्यू. कपूर